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नये शोध में हुआ खुलासा, रक्त पहले से बताता है कौन सी बीमारियों का है खतरा

  • Writer: beyondheadlineoffi
    beyondheadlineoffi
  • 3 days ago
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Indian Institute of Technology Bombay (आईआईटी बॉम्बे) और Osmania Medical College की टीम ने सेहत की क्षेत्र में एक बड़ा शोध किया है। यह शोध बताता है कि रक्त के छोटे अणुओं (मेटाबोलाइट्स)ने न केवल टाइप-2 डायबिटीज़ की शुरुआत से पहले संकेत दिए हैं, बल्कि गुर्दे की बीमारी (डायबिटिक नेफ्रोपैथी) का जोखिम भी पहले से चेतावनी देता है।

कब और कहां हुआ शोध


अनुसंधान दल ने जून 2021 से जुलाई 2022 के बीच हैदराबाद स्थित ओस्मानिया जनरल हॉस्पिटल में 52 स्वस्थ तथा डायबिटीज़/गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के रक्त सैंपल की जांच की। लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मॉस स्पेक्ट्रोमेट्री (LC-MS) एवं गैस क्रोमैटोग्राफी-मॉस स्पेक्ट्रोमेट्री (GC-MS) के माध्यम से लगभग 300 मेटाबोलाइट्स का विश्लेषण हुआ।


रिसर्च में क्या आया

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई 26 ऐसे मेटाबोलाइट्स पाए गए जिनका स्तर स्वस्थ नियंत्रकों की तुलना में डायबिटीज़ रोगियों में अलग था। इनमें ग्लूकोज़, कोलेस्ट्रॉल जैसी परिचित सामग्री भी थीं, लेकिन ‘वेलेरोबेटाइन’, ‘राइबोथाइमिडीन’, तथा ‘फ्रुक्टोसिल-पाइरोग्लूटामेट’ जैसे नए अणु भी शामिल थे जो पहले डायबिटीज़ से सीधे नहीं जुड़े थे। विशेष रूप से गुर्दे की समस्या वाले समूह में सात मेटाबोलाइट्स मिले जिनका स्तर लगातार स्वस्थ. डायबिटीज़, डायबिटिक गुर्दे रोगियों में बढ़ रहा था। इनमें शुगर अल्कोहल्स जैसे अराबिटॉल, मायो-इनोजिटॉल और 2PY नामक विष-सदृश यौगिक शामिल हैं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट


अनुसंधानकर्ता कहते हैं कि “टाइप 2 डायबिटीज़ सिर्फ हाई ब्लड शुगर का मामला नहीं है। यह अमीनो एसिड्स, वसा तथा अन्य जैविक मार्गों को प्रभावित करता है — तथा मानक परीक्षण अक्सर इस छुपी प्रक्रिया को नहीं पकड़ पाते।” — स्नेहा राणा, पीएचडी शोधकर्ता, आईआईटी बॉम्बे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई यह खोज भविष्य में एक सरल क्लिनिकल परीक्षण का आधार बन सकती है जो डायबिटीज़ के शुरुआती जोखिम और गुर्दे की जटिलताओं का अनुमान पहले लगा सके। मौजूदा परीक्षण जैसे क्रिएटिनिन, ईजीएफआर या अल्ब्यूमिन्यूरिया के साथ-साथ ये नए मार्कर्स मरीजों की देखभाल को व्यक्तिगत (पर्सनलाइज्ड) बना सकते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई हालाँकि अभी नमूना आकार छोटा है, टीम इसे आगे बढ़ाकर बड़े पैमाने पर अध्ययन करना चाहती है ताकि इस परीक्षण को क्लिनिकल सेटअप में लाया जा सके।

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