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अमेज़न ने Perplexity के एआई शॉपिंग बॉट पर लगाई रोक, समझें क्या है पूरा विवाद

  • Writer: beyondheadlineoffi
    beyondheadlineoffi
  • 4 days ago
  • 2 min read
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ई-कॉमर्स कंपनी अमेज़न (Amazon) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी Perplexity AI को चेतावनी दी है कि उसका नया शॉपिंग टूल “Comet” अमेज़न की वेबसाइट पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।अमेज़न का कहना है कि यह टूल अपने आप वेबसाइट पर जाकर खरीदारी करने की कोशिश करता है, जैसे कोई इंसान कर रहा हो। कंपनी के मुताबिक, यह उनके प्लेटफॉर्म के नियमों का उल्लंघन है और इससे ग्राहकों के अनुभव पर भी असर पड़ सकता है।



क्या है Perplexity का “Comet” टूल ?

Perplexity का “Comet” एक एआई ब्राउज़र असिस्टेंट है, जो यूज़र्स के लिए ऑनलाइन चीज़ें सर्च कर सकता है, उन्हें जोड़ सकता है, और यहाँ तक कि खरीदारी भी कर सकता है।

उदाहरण के तौर पर, अगर कोई यूज़र कहे “मेरे लिए ₹2000 तक का हेडफोन खरीद दो”, तो यह टूल खुद वेबसाइट पर जाकर हेडफोन ढूंढकर खरीदारी की प्रक्रिया पूरी कर सकता है।


अमेज़न क्यों नाराज़ है?


अमेज़न ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि Comet” यह दिखाता है जैसे कोई व्यक्ति खरीदारी कर रहा हो, जबकि वास्तव में यह एक बॉट (स्वचालित प्रोग्राम) है।


ऐसे बॉट्स से सुरक्षा और गोपनीयता दोनों को खतरा हो सकता है।


साथ ही, यह अमेज़न की ट्रैफिक नीतियों का उल्लंघन है, क्योंकि किसी भी तीसरे पक्ष के सॉफ्टवेयर को पहले अनुमति लेनी होती है।


Perplexity का जवाब


Perplexity का कहना है कि उसका टूल यूज़र के आदेश पर ही काम करता है, न कि अपने आप।

कंपनी ने कहा कि वह यूज़र्स के लॉगिन या पर्सनल डेटा को अपने सर्वर पर नहीं रखती, इसलिए यह सुरक्षित है।

Perplexity ने अमेज़न के आरोपों को “दबाव बनाने की कोशिश” बताया और कहा कि बड़ी टेक कंपनियाँ नई एआई तकनीकों को रोकना चाहती हैं।


क्यों अहम है यह विवाद


यह मामला दिखाता है कि कैसे एआई आधारित एजेंट अब पारंपरिक वेबसाइटों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को चुनौती दे रहे हैं।

अमेज़न जैसी कंपनियाँ अपने सिस्टम की सुरक्षा और नियंत्रण बनाए रखना चाहती हैं।जबकि एआई कंपनियाँ कहती हैं कि ये टूल्स ग्राहकों की सुविधा बढ़ाने के लिए बनाए गए हैं।


इस विवाद के मायने क्या है


यह विवाद आने वाले समय की झलक है ,जहाँ एआई एजेंट्स बनाम बड़ी टेक कंपनियों के बीच संतुलन बनाना बड़ी चुनौती होगा।

कानूनी और तकनीकी नियमों के बीच यह लड़ाई तय करेगी कि भविष्य में ऑनलाइन खरीदारी कितनी “स्मार्ट” और कितनी नियंत्रित होगी।

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